100 वर्ष बाद हल हुई गणितीय समस्या विज्ञान और प्रौद्योगिकी के लिए क्यों महत्वपूर्ण है?

Divya Tyagi प्रोफेसर Sven Schmitz के साथ

एक शताब्दी पुरानी गणितीय समस्या, जिसे "ग्लॉअर्ट की समस्या" के नाम से जाना जाता है, पवन ऊर्जा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है।

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हरमन ग्लॉअर्ट, एक ब्रिटिश वायुगतिकीविद (aerodynamicist) ने इस समस्या को विकसित किया था, जो पवन टरबाइन के अधिकतम वायुगतिकीय प्रदर्शन को निर्धारित करने पर केंद्रित थी।

यह समस्या मूल रूप से एक पवन टरबाइन के लिए आदर्श प्रवाह परिस्थितियों (ideal flow conditions) को हल करने का प्रयास करती हैं, जिससे उसका बिजली उत्पादन अधिकतम हो सके। इसका मुख्य उद्देश्य था "पावर कोएफिशिएंट" (power coefficient), (Cp) को अधिकतम करना - यह एक माप है जो बताता है कि टरबाइन कितनी कुशलता से हवा की ऊर्जा को बिजली में परिवर्तित करती है।

हालांकि, ग्लॉअर्ट के मूल कार्य में एक महत्वपूर्ण सीमा थी:

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उन्होंने केवल अधिकतम प्राप्त करने योग्य पावर कोएफिशिएंट पर ध्यान केंद्रित किया, लेकिन रोटर (टरबाइन का घूमने वाला हिस्सा जिसमें ब्लेड जुड़े होते हैं) पर कार्य करने वाले कुल बल और आघूर्ण गुणांकों (force and moment coefficients) का हिसाब नहीं लगाया। साथ ही, उन्होंने यह भी नहीं देखा कि हवा के दबाव के तहत टरबाइन के ब्लेड कैसे मुड़ते हैं।

इस समस्या को प्रोफेसर Sven Schmitz ने एक सरल उदाहरण से समझाया है:

Credit : The Science Survey

"अगर आप अपनी बाहें फैलाए हुए हैं और कोई आपकी हथेली पर दबाव डालता है, तो आपको उस गति का विरोध करना पड़ता है।"

हम इसे "डाउनविंड थ्रस्ट फोर्स" और "रूट बेंडिंग मोमेंट" कहते हैं, और पवन टरबाइनों को इसका भी सामना करना पड़ता है। आपको समझना होगा कि कुल भार कितना बड़ा है, जिसे ग्लॉअर्ट ने अपने कार्य में शामिल नहीं किया था।

उपरोक्त चित्र में "डाउनविंड थ्रस्ट फोर्स" का प्रभाव एक पैराशूट पर देख सकते हैं, कुछ ऐसा ही प्रभाव विंड टरबाइन के ब्लैड्स पर होता है।


Penn State University की एक इंजीनियरिंग छात्रा दिव्या त्यागी ने इस शताब्दी पुरानी गणितीय समस्या को एक सरल और अधिक सुंदर रूप में परिष्कृत किया है। एक स्नातक छात्रा के रूप में श्रेयर ऑनर्स कॉलेज के लिए अपने शोध प्रबंध (thesis) के रूप में, उन्होंने ग्लॉअर्ट की समस्या के लिए एक परिशिष्ट (addendum) विकसित किया, जो हवा के प्रवाह की आदर्श स्थितियों को हल करके पवन टरबाइन के अधिकतम वायुगतिकीय प्रदर्शन को निर्धारित करता है और इसकी बिजली उत्पादन क्षमता को अधिकतम करता है।

दिव्या का समाधान विचलन गणना (calculus of variations) पर आधारित है, जो बाधित अनुकूलन समस्याओं (constrained optimization problems) के लिए एक गणितीय विधि है।

(सख्त रूप में नहीं लेकिन थोड़े आसान सारगर्भित शब्दों में इन्हें समझ लेते हैं कि ये हैं क्या!)

  • कैलकुलस ऑफ वेरिएशन्स क्या है?

कल्पना कीजिए कि आप अपने घर से बाजार जाना चाहते हैं। आप कई रास्तों से जा सकते हैं:

- सबसे छोटा रास्ता

- सबसे कम ट्रैफिक वाला रास्ता

- सबसे अच्छी सड़क वाला रास्ता

कैलकुलस ऑफ वेरिएशन्स एक ऐसा गणितीय तरीका है जो आपको बताता है कि आपकी जरूरत के हिसाब से कौन सा पूरा रास्ता सबसे अच्छा है। यह बस शुरू और अंत के बिंदुओं को नहीं, बल्कि पूरे रास्ते के आकार को देखता है।

  • अब बाधित अनुकूलन क्या है?

बाधित अनुकूलन का मतलब है - कुछ सीमाओं के भीतर रहते हुए सबसे अच्छा रास्ता या समाधान निकालना।

जैसे - आपको एक मिठाई बनानी है:

- आप चाहते हैं कि वह मिठाई बहुत स्वादिष्ट हो

- लेकिन आपके पास सिर्फ 100 रुपये हैं

- और मिठाई 1 घंटे में बननी चाहिए

इन सीमाओं (पैसे और समय) के भीतर रहते हुए आप सबसे स्वादिष्ट मिठाई का नुस्खा ढूंढते हैं। यही बाधित अनुकूलन है।

दिव्या त्यागी ने इन विधियों का उपयोग पवन चक्की (विंड टरबाइन) की समस्या पर किया:

सरल शब्दों में:

1. मुख्य लक्ष्य : पवन चक्की से अधिक से अधिक बिजली पाना

2. सीमाएँ : यह भी सुनिश्चित करना कि पवन चक्की तेज हवा से टूटे नहीं

दिव्या ने यह पता लगाया कि हवा को पवन चक्की के पास से किस तरह गुजरना चाहिए, ताकि:

- बिजली ज्यादा से ज्यादा बने

- और पवन चक्की पर दबाव भी सही मात्रा में रहे

उनके काम से पवन ऊर्जा सस्ती और बेहतर हो सकती है। यह हमारे पर्यावरण के लिए अच्छा है और बिजली के बिल भी कम हो सकते हैं।

इस तरह, गणित के जटिल सिद्धांतों का उपयोग करके उन्होंने एक ऐसा समाधान निकाला जो हवा और पवन चक्की के बीच के संबंध को बेहतर ढंग से समझता है।


इन्होंने न केवल मूल पावर कोएफिशिएंट को देखा, बल्कि रोटर पर कार्य करने वाले कुल बल और आघूर्ण गुणांकों (force and moment coefficients) का भी विश्लेषण किया - जो ग्लॉअर्ट के मूल कार्य में नहीं था।

इस समाधान की सबसे बड़ी विशेषता इसकी सरलता और सौंदर्य है।

प्रोफेसर Schmitz के अनुसार, दिव्या के परिशिष्ट की सरलता लोगों को पवन टरबाइन डिजाइन के नए पहलुओं का पता लगाने की अनुमति देगी। यह शोध "विंड एनर्जी साइंस" में प्रकाशित हुआ है जिसे आप यहाँ देख सकते हैं - Glauert's optimum rotor disk revisited – a calculus of variations solution and exact integrals for thrust and bending moment coefficients

दिव्या त्यागी के अनुसार, "एक बड़े पवन टरबाइन के पावर कोएफिशिएंट में मात्र 1% का सुधार भी एक टरबाइन के ऊर्जा उत्पादन पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है, और यह उन अन्य गुणांकों की ओर बढ़ता है जिनके लिए हमने संबंध प्राप्त किए हैं। पावर कोएफिशिएंट में 1% का सुधार एक टरबाइन के ऊर्जा उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि कर सकता है, जिससे संभवतः एक पूरे आवासीय क्षेत्र को बिजली मिल सकती है।"

अभी वह एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में मास्टर्स डिग्री प्राप्त कर रही हैं और उन्होंने अपने अंडरग्रेजुएट के दौरान यह महत्वपूर्ण शोध कार्य किया है। अपने वरिष्ठ वर्ष के दौरान, त्यागी को ग्लॉअर्ट के कार्य पर अपने शोध प्रबंध के लिए Anthony E. Wolk पुरस्कार मिला है। यह पुरस्कार एयरोस्पेस इंजीनियरिंग के एक वरिष्ठ छात्र को दिया जाता है जिसने एयरोस्पेस इंजीनियरिंग के छात्रों के बीच सर्वश्रेष्ठ शोध प्रबंध विकसित किया हो।

वर्तमान में वह एक महत्वपूर्ण वैज्ञानिक अध्ययन कर रही हैं। वे कंप्यूटर पर हेलिकॉप्टर के पंखों के चारों ओर हवा के बहाव का अध्ययन कर रही हैं। जो 'Computational fluid dynamics' के अंतर्गत आता है।

उनके अध्ययन का मुख्य उद्देश्य यह समझना है कि जब हेलिकॉप्टर समुद्री जहाज़ पर उतरता है, तो क्या होता है। जब जहाज़ चलता है, तो उसके पीछे हवा एक विशेष तरीके से बहती है। इसे 'एयरवेक' कहते हैं।

Credit : ResearchGate

वे अपने अध्ययन में यह जानना चाहती हैं कि जहाज़ के पीछे की यह हवा, हेलिकॉप्टर को कैसे प्रभावित करती है जब वह जहाज़ पर उतरने की कोशिश करता है।

यह शोध अमेरिकी नौसेना द्वारा फंडेड है। इस अध्ययन से उड़ान प्रशिक्षण बेहतर होगा और पायलटों की सुरक्षा में सुधार होगा।

Credit : CNBC TV18

अपने अंडरग्रेजुएट शोध पर विचार करते हुए, दिव्या ने कहा कि कागज पर अपने समाधान को सिद्ध करना चुनौतीपूर्ण था। "मैं समस्या, शोध प्रबंध लिखने और शोध पर हर सप्ताह लगभग 10 से 15 घंटे खर्च करती थी। इसमें बहुत समय लगा क्योंकि यह इतना गणित-गहन था," उन्होंने कहा। "लेकिन अब मैं वास्तव में गर्व महसूस करती हूं, अपने सारे काम को देखकर।"

हालांकि यह शोध पत्र मेरा तो नहीं है किंतु यह लेख लिखते समय मुझे भी गर्व की एक विशेष अनुभुति हो रही है कि - भारत की महिलाएं अब एप्लीकेशन के साथ- साथ कोर साइंसेज में भी योगदान दे रहीं हैं, जो पहले ना के बराबर था।


प्रोफेसर Schmitz , जो दशकों से ग्लॉअर्ट की समस्या पर विचार कर रहे थे, ने त्यागी की दृढ़ता की सराहना की है। उन्होंने कहा "जब मैंने ग्लॉअर्ट की समस्या के बारे में सोचा, तो मुझे लगा कि कुछ कदम गायब हैं और यह बहुत जटिल था" । "इसे करने का एक आसान तरीका होना चाहिए था। तभी दिव्या आईं, वह चौथी छात्रा थीं जिन्हें मैंने इस समस्या को देखने की चुनौती दी थी, और वह एकमात्र ऐसी थीं जिन्होंने इसे हल किया। उनका काम वास्तव में प्रभावशाली है।"

प्रोफेसर Schmitz के अनुसार, "असली प्रभाव अगली पीढ़ी के पवन टरबाइनों पर पड़ेगा जो नए ज्ञान का उपयोग करेंगे। जहां तक दिव्या के सुंदर समाधान की बात है, मुझे लगता है कि यह देश भर और दुनिया भर के कक्षाओं में अपना रास्ता खोज लेगा।"